देख कर मंज़र ये ख़ुद हैरान है शैतान भी
बज़्म में इंसान की मेहमान है शैतान भी
करता है शैतान जो ये भी वही करने लगा
आजकल आमाल से इंसान है शैतान भी
कैसे आदम-ज़ाद को बहका रहा है देखिए
दहर में छोटा सा ही भगवान है शैतान भी
पैकर-ए-इंसाँ में ये दोनों ही अब पैवस्त हैं
बन रहा है सब ख़ुदा इंसान है शैतान भी
इक तरफ़ ख़ौफ़-ए-जहन्नुम इक तरफ़ जन्नत की चाह
दरमियाँ उसके बना चट्टान है शैतान भी
देखना है कौन ज़ब्त-ए-नफ़्स को देगा शिकस्त
जा-ब-जा लड़ता हुआ इंसान है शैतान भी
जब ख़्याल-ए-इश्क़ आए दिल बहाए सैल-ए-ख़ूँ
देख कर हालत मेरी हलकान है शैतान भी
इस ज़माने में है दोनों का ही साहिल इक वुजूद
ख़ुद की ख़ातिर लड़ रहा इंसान है शैतान भी
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