शोर है सारे महजबीनों में
इक नगीना है सौ नगीनों में
वो शराफ़त का एक पुतला है
हाँ मगर साथ के कमीनों में
सब ने मतलब की खींच कर सरहद
बाँट दी है ज़मीं ज़मीनों में
मोड़ कर मुँह गया जो ये दरिया
आग दे दी गई सफ़ीनों में
अब दिमाग़ों में ऐसे है नफ़रत
गोलियाँ जैसे मैगज़ीनों में
मुझ को ख़तरा तो पैरहन से है
साँप बैठे है आस्तीनों में
हम को बस शाइरी से है मतलब
आप रहिएगा नामचीनों में
देखिए दिल दिमाग़ और ये इश्क़
जंग जारी है कब से तीनों में
खोटे सिक्के हैं हम बता साहिल
कौन रक्खेगा अब ख़ज़ीनों में
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