दिल ये जलता है शब-ओ-रोज़ दग़ा देता है
मुझको वो शख़्स यूँ चाहत की सज़ा देता है
पहले तो कितने हसीं ख़्वाब दिखाता मुझको
फिर यकायक वो मिरी नींद उड़ा देता है
साथ ठुकराता है पहले मेरा बेज़ारी में
जो पलटता हूँ तो रो-रो के सदा देता है
कैसा इंसान है बर्बाद यूँ करता है सुकून
बात बे-बात वो बातों को हवा देता है
मैं तो हूँ दुनिया का दुत्कारा हुआ इक दरपेश
ऐसा दरपेश जो हँसता है दुआ देता है
और क्या करता है कोई किसी की मौत के बाद
हार पहनाता है तस्वीर लगा देता है
दिल दुखाता है तो बोसा भी दिया करता है
ज़ख़्म देता है तो मरहम भी लगा देता है
जो भी आता है चला जाता है ये कह के 'बशर'
चंद बातों के सिवा और तू क्या देता है
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