पहली उल्फ़त का असर आधा इधर आधा उधर
इक वो सपनों का नगर आधा इधर आधा उधर
चाँदनी में वो खड़ा था साया मेरी छत पे था
आ रहा था वो नज़र आधा इधर आधा उधर
दे उसे रब हर ख़ुशी और ग़म इधर ही रहने दे
हाल दिल का बाँट कर आधा इधर आधा उधर
उसके वादे पर यक़ीं होता नहीं होता भी है
कब टिका वो बात पर आधा इधर आधा उधर
बज़्म में वो मह-जबीं बैठा है जो चिलमन क़रीब
हुस्न उसका जल्वा-गर आधा इधर आधा उधर
उसके आँगन में थी बारिश ख़ुश्क था अपना चमन
जो था बादल अर्श पर आधा इधर आधा उधर
रह रहा दुनिया में वो पर सोचता उक़्बा की है
शेख़ है ख़ाना-बदर आधा इधर आधा उधर
मय का प्याला इस तरफ़ है कू-ए-जानाँ उस तरफ़
ज़िन्दगी का कुल सफ़र आधा इधर आधा उधर
इस तरफ़ दुनिया-ए-दिल है ज़ेहनी बस्ती उस तरफ़
अपना सहरद पे है घर आधा इधर आधा उधर
इस तरफ़ पैमाना रक्खा चश्म-ए-साक़ी उस तरफ़
कहिए मय-ख़ाना किधर आधा इधर आधा उधर
वो जफ़ाकारी पे क़ाइम और वफ़ादारी पे हम
आशिक़ी का ये हुनर आधा इधर आधा उधर
शाइरी और नौकरी ये दोनों सौतन की तरह
बँट गया हूँ यूँ 'बशर' आधा इधर आधा उधर
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