अब्र नफ़रत का बरसता है ख़ुदा ख़ैर करे
हर तरफ़ क़हर सा बरपा है ख़ुदा ख़ैर करे
चुन भी पाए न थे अब तक ये शिकस्ता दिल को
संग फिर उसने उठाया है ख़ुदा ख़ैर करे
जो गया था अभी इस सिम्त से ले कर ख़ंजर
जाने क्या सोच के पलटा है ख़ुदा ख़ैर करे
क़ातिल-ए-शहर के हमराह ये सारे लश्कर
हाकिम-ए-शहर अकेला है ख़ुदा ख़ैर करे
किसलिए नींद से अब डरने लगे हैं बच्चे
ख़्वाब आँखों में ये कैसा है ख़ुदा ख़ैर करे
उम्र भर आग बुझाता जो रहा बस्ती में
घर उसी शख़्स का जलता है ख़ुदा ख़ैर करे
हादसे कैसे हैं उस शख़्स ने देखे अब तक
वो दुआ सबको ये देता है ख़ुदा ख़ैर करे
कितना पुरशोर था माहौल ये बस्ती का 'बशर'
नागहाँ किसलिए चुप सा है ख़ुदा ख़ैर करे
Read Full