सियाह रात है हाथों में मय जवाब नहीं - SAFEER RAY

सियाह रात है हाथों में मय जवाब नहीं
जो ज़िन्दगी है मेरी ये सड़ी किताब नहीं

वफ़ा को देख के हर बार दिल मचलता है
ख़याल-ए-इश्क़ में अब तक कोई ख़िताब नहीं

बदन से तेरे निकलती है ये अजब ख़ुशबू
है तेरे दर्द सा लेकिन कोई गुलाब नहीं

हर एक रात को रुस्वा हुआ है चाँद मेरा
किसी के ख़्वाब सा तारीकियों में बाब नहीं

बयान-ए-दर्द कोई और भी करे कैसे
मेरी सदा में किसी और का हिसाब नहीं

बसा है इश्क़ जो दिल में वो फ़िक्र है शायद
मगर ज़बाँ पे वो अल्फ़ाज़-ए-बे-इताब नहीं

- SAFEER RAY
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