apni khabar na us ka pata hai ye ishq hai | अपनी ख़बर न उस का पता है ये इश्क़ है

  - Irfan Sattar

apni khabar na us ka pata hai ye ishq hai
jo tha nahin hai aur na tha hai ye ishq hai

pehle jo tha vo sirf tumhaari talash thi
lekin jo tum se mil ke hua hai ye ishq hai

tashkeek hai na jang hai mabein-e-aql-o-dil
bas ye yaqeen hai ki khuda hai ye ishq hai

behad khushi hai aur hai be-intihaa sukoon
ab dard hai na gham na gila hai ye ishq hai

kya ramz jaanani hai tujhe asl-e-ishq kii
jo tujh mein us badan ke siva hai ye ishq hai

shohrat se teri khush jo bahut hai ye hai khird
aur ye jo tujh mein tujh se khafa hai ye ishq hai

zer-e-qaba jo husn hai vo husn hai khuda
band-e-qaba jo khol raha hai ye ishq hai

idraak kii kami hai samajhna ise marz
is kii dua na is kii dava hai ye ishq hai

shaffaf-o-saaf aur lataafat mein be-misaal
saara vujood aaina sa hai ye ishq hai

yaani ki kuchh bhi is ke siva soojhtaa nahin
haan to janab mas'ala kya hai ye ishq hai

jo aql se badan ko mili thi vo thi havas
jo rooh ko junoon se mila hai ye ishq hai

is mein nahin hai dakhl koii khauf o hirs ka
is kii jazaa na is kii saza hai ye ishq hai

sajde mein hai jo mahv-e-dua vo hai be-dili
ye jo dhamaal daal raha hai ye ishq hai

hota agar kuchh aur to hota ana-parast
us kii raza shikast-e-ana hai ye ishq hai

irfaan maanne mein taammul tujhe hi tha
maine to ye hamesha kaha hai ye ishq hai

अपनी ख़बर न उस का पता है ये इश्क़ है
जो था नहीं है और न था है ये इश्क़ है

पहले जो था वो सिर्फ़ तुम्हारी तलाश थी
लेकिन जो तुम से मिल के हुआ है ये इश्क़ है

तश्कीक है न जंग है माबैन-ए-अक़्ल-ओ-दिल
बस ये यक़ीन है कि ख़ुदा है ये इश्क़ है

बेहद ख़ुशी है और है बे-इंतिहा सुकून
अब दर्द है न ग़म न गिला है ये इश्क़ है

क्या रम्ज़ जाननी है तुझे अस्ल-ए-इश्क़ की
जो तुझ में उस बदन के सिवा है ये इश्क़ है

शोहरत से तेरी ख़ुश जो बहुत है ये है ख़िरद
और ये जो तुझ में तुझ से ख़फ़ा है ये इश्क़ है

ज़ेर-ए-क़बा जो हुस्न है वो हुस्न है ख़ुदा
बंद-ए-क़बा जो खोल रहा है ये इश्क़ है

इदराक की कमी है समझना इसे मरज़
इस की दुआ न इस की दवा है ये इश्क़ है

शफ़्फ़ाफ़-ओ-साफ़ और लताफ़त में बे-मिसाल
सारा वजूद आईना सा है ये इश्क़ है

यानी कि कुछ भी इस के सिवा सूझता नहीं
हाँ तो जनाब मसअला क्या है ये इश्क़ है

जो अक़्ल से बदन को मिली थी वो थी हवस
जो रूह को जुनूँ से मिला है ये इश्क़ है

इस में नहीं है दख़्ल कोई ख़ौफ़ ओ हिर्स का
इस की जज़ा न इस की सज़ा है ये इश्क़ है

सज्दे में है जो महव-ए-दुआ वो है बे-दिली
ये जो धमाल डाल रहा है ये इश्क़ है

होता अगर कुछ और तो होता अना-परस्त
उस की रज़ा शिकस्त-ए-अना है ये इश्क़ है

'इरफ़ान' मानने में तअम्मुल तुझे ही था
मैंने तो ये हमेशा कहा है ये इश्क़ है

  - Irfan Sattar

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