वो अपनी बात को बेहद ही अब उम्दा समझती है - "Nadeem khan' Kaavish"

वो अपनी बात को बेहद ही अब उम्दा समझती है
सियासत है कि अब ख़ुद को ही जाने क्या समझती है

मेरी लाशों के बिखरे ख़्वाब हॅंसकर ये बताते हैं
ग़रीबी हर तरह के झूले को पॅंखा समझती है

कभी अपनी ही ख़ुद्दारी ने मुँह के बल गिराया है
ये दुनिया दिल नहीं ऐ दोस्त, बस पैसा समझती है

बताओ इससे प्यारा और कोई भी ख़ुदा है क्या
मेरी माँ हर किसी के बच्चे को बेटा समझती है

ज़माना मार देता है या ख़ुद ही हार जाते हैं
मुहब्बत सच्ची हो तो यार बस फंदा समझती है

ये दुनिया क्या समझती है, मुझे कोई तो समझाओ
वगरना मैं बताता हूँ ये ख़ुद को क्या समझती है

- "Nadeem khan' Kaavish"
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