सभी के ही लिए जब घर खुला है आसमानों में - Shayra kirti

सभी के ही लिए जब घर खुला है आसमानों में
हमीं क्यूँ फ़र्क करते हैं परिंदों की उड़ानों में

हमारे खा गई लड़के कमाई नौकरी और छत
हमारी लड़कियाँ है दफ़्न इन छत की ढलानों में

न कोई राय हो ने मत बिछी रहती हो नतमस्तक
हो कुछ तो फ़र्क घरवाली व घर के पाएदानों में

जिन्हें मंज़ूर होती है वफ़ा की खुरदरी रोटी
वो जबरन ब्याह दी जाती है ऊँचे ख़ानदानों में

जो मन को मार लेगी बस वही देवी वही सीता
बड़ा सत्कार मुर्दों का तुम्हारे क़त्लख़ानों में

हर इक लड़की के पीछे हैं कम अज़ कम चार छह मजनूँ
न होकर भी वो होगी बेवफ़ा कुछ इक फ़सानों में

- Shayra kirti
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