ये पेशा गर्ज़ तो नौकर बनाएँगे
मगर हम इश्क़ में करियर बनाएँगे
सितम और ज़ुल्म का दफ़्तर बनाएँगे
हमारी जान को अफ़सर बनाएँगे
मुहब्बत काम हो और हो कमाई भी
निज़ाम ऐसा वफ़ा परवर बनाएँगे
जिसे पूजें तो तुम आ रूबरू होवो
इक ऐसा जादुई पत्थर बनाएँगे
बहुत गंदी हुई जाती है क़ौम-ए-फ़न
हम इसकी ज़ात को बेहतर बनाएँगे
मुई ये नींद भी आती नहीं कब से
अब अपनी क़ब्र को बिस्तर बनाएँगे
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