वो बे-वफ़ा ही सही फिर भी प्यार रहता है
गुलों से ज़्यादा तो फ़िक्र-ए-ग़ुबार रहता है
जफ़ा से डर नहीं बस ख़ौफ़ है बिछड़ने का
सितमगरों पे हमें एतिबार रहता है
तू आँख मीच के चलना हमेशा सहरा में
हवा का रेत पे भी इख़्तियार रहता है
ये आशिक़ी ने सिखाया है इंतिज़ार का फ़न
ये दिल तो फिर भी मिरा सोगवार रहता है
यूँ तो कभी मैं उसे फ़ोन तक नहीं करता
विसाल-ए-यार को दिल बे-क़रार रहता है
कभी-कभार तो लगता है छोड़ दूँ उसको
मगर ये दिल मिरा आली-वक़ार रहता है
As you were reading Shayari by Harsh Kumar Bhatnagar
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