"डर लगता है" - Harsh Kumar

"डर लगता है"

आग़ाज़-ए-इश्क़ करने से डर लगता है
मैं क़ाबिल नहीं हूँ शायद इसलिए लगता है
ये अँधेरों से ही तअल्लुक़ है मेरा
उजालों में तो रोने से मुझे डर लगता है
ये हर वक़्त पाक रहने की जो ज़िद है मेरी
हर बात पे अड़ जाने की आदत है मेरी
मुझे मालूम है ग़लत हूँ पर रुकूँगा मैं नहीं
हार जाने से हमेशा ही मुझे डर लगता है
हाँ मुझे मालूम है क़ाबिल नहीं हूँ
तेरी फ़ेहरिस्त में शामिल नहीं हूँ
गले लगाने की तुझे हसरत है मुझे
तेरी ख़्वाबों में आने की चाहत है मुझे
तेरे होने से मुझे मेरा घर लगता है
मगर इनकार होने से मुझे डर लगता है

- Harsh Kumar
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