इक वही सुब्ह-ओ-शाम है 'क़ैसर'
और क्या तुझ को काम है 'क़ैसर
अब तो बस ख़ुद-कुशी ही रस्ता है
और वो भी हराम है 'क़ैसर'
अब यक़ीं किस पे कीजिएगा भला
हर कोई ख़ुश-कलाम है 'क़ैसर'
हम ने चाहा था टूट कर उस को
ख़ूब ये इत्तिहाम है 'क़ैसर'
जिस के हर शे'र में है तू पिंहाँ
उस ही शाइर का नाम है 'क़ैसर'
बेशक इंसान है ख़सारे में
ये ख़ुदा का कलाम है 'क़ैसर'
देखो जिस ज़ाविये से दिल-कश है
वो तो माह-ए-तमाम है 'क़ैसर'
जब से देखा है वो तन-ए-'उर्यां
हर घड़ी तिश्ना-काम है 'क़ैसर'
जबकि मुद्दत से मेरे साथ नहीं
क्यों वो फिर हम-ख़िराम है 'क़ैसर'
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