और चुप रहने पे तैयार नहीं हैं हम लोग
आदमी हैं दर-ओ-दीवार नहीं हैं हम लोग
धूप और छाँव का जादू न चलाओ हम पर
चढ़ते सूरज के परस्तार नहीं हैं हम लोग
हम से ज़िंदा है ज़माने में तमद्दुन का निज़ाम
मुर्दा तहज़ीबों के आसार नहीं हैं हम लोग
जिन को किरदार का मफ़्हूम बताया हम ने
वो कहें साहब-ए-किरदार नहीं हैं हम लोग
जाओ तारीख़ के औराक़ पलटकर देखो
फिर ये कहना कि वफ़ादार नहीं हैं हम लोग
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