बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़-ओ-शब देखेगा कौन - Meraj Faizabadi

बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़-ओ-शब देखेगा कौन
लोग तेरा जुर्म देखेंगे सबब देखेगा कौन

हाथ में सोने का कासा ले के आए हैं फ़क़ीर
इस नुमाइश में तिरा दस्त-ए-तलब देखेगा कौन

ला उठा तेशा चटानों से कोई चश्मा निकाल
सब यहाँ प्यासे हैं तेरे ख़ुश्क लब देखेगा कौन

दोस्तों की बे-ग़रज़ हम-दर्दियाँ थक जाएँगी
जिस्म पर इतनी ख़राशें हैं कि सब देखेगा कौन

शाइरी में 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के ज़माने अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन

- Meraj Faizabadi
2 Likes

More by Meraj Faizabadi

As you were reading Shayari by Meraj Faizabadi

Similar Writers

our suggestion based on Meraj Faizabadi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari