बोसे के दरमियाँ न करो होंठ का बचाव - Manmauji

बोसे के दरमियाँ न करो होंठ का बचाव
इतना भी लाज़िमी नहीं होंठों का रख रखाव

माना हम एतिराफ़ का दावा न कर सके
फिर भी खटक रहा है तेरा ग़ैर से लगाव

सबसे ज़रूरी इश्क़ में रक्खा है रूह को
आख़िर के पायदान पे है जिस्म का अलाव

कुछ साज़िशें थी वक़्त कीपहुँचा न वक़्त पे
राह-ए-हयात में भी मेरी कम न थे घुमाव

इक तुम को जीत के लगा दुनिया ही जीत ली
मौजी अब अपनी मूँछ पे देने लगा है ताव

- Manmauji
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