मुमकिन है कल हयात में कोई कमी न हो
पर क्या पता लबों पे मेरे तिश्नगी न हो
ता-उम्र नोक-झोंक के इम्काँ हो दरमियाँ
झगड़ा हमारे बीच कोई आख़िरी न हो
गर ख़ुदकुशी से मर चुके तो माँ को देख लो
दावा है तुमसे ख़्वाब में भी ख़ुदकुशी न हो
चाहा है उम्र-भर तुझे चाहेंगे दिल-निहाद
वो आरज़ू ही क्या जो कभी हो कभी न हो
इक उम्र ख़र्च की है तेरे इंतिज़ार में
ऐसा न हो कि आख़िरी दीदार भी न हो
'मौजी' अजीब शर्त लगाते हो आँख पे
तर्क-ए-तअल्लुक़ात पर इनमें नमी न हो
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