नौजवानी ला-मकानी जाँ फ़िशानी और तुम - Manmauji

नौजवानी ला-मकानी जाँ फ़िशानी और तुम
देर से आये मेरे लफ़्ज़ों में मानी और तुम

ज़ीस्त का पुरख़ार सहरा पार करने के लिए
दो ही चीज़े लाज़मी हैं शेरख़्वानी और तुम

इस जहां से उस जहां तक दो ही चीजें पाक है
स्वर्ग से उतरी हुई गंगा का पानी और तुम

लाख समझाऊँ मगर ख़ुद को यक़ीं होता नहीं
बस इसी हैरत में हूँ मेरी दिवानी और तुम

मैं तो शायर हूँ ख़यालातों से भी है दोस्ती
शायरी में जी ही लूँगा ज़िंदगानी और तुम

- Manmauji
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