वैसे तो हम यार भुला भी देते पर
ज़ख़्म दिए हैं उसने मेरे सीने पर
इतने दिन तक साथ रहे हैं हम दोनों
आदत सब जाएँगी उसके बच्चे पर
अब तुम बतलाओगे उसके बारे में
देखो इक तिल और है उसके कंधे पर
जिस घर में बस माँ हो , मैंने देखा है
फिर ज़िम्मेदारी होती है बेटे पर
As you were reading Shayari by Nirvesh Navodayan
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