आज नज़र से गिर बैठे हैं पर पहले अनमोल रहे थे - Nityanand Vajpayee

आज नज़र से गिर बैठे हैं पर पहले अनमोल रहे थे
एक अकेले तुम क्या सारे भँवरे उन पर डोल रहे थे

मैंने सोचा था कुछ अच्छी बात करेंगें लेकिन वो तो
पूरे वक़्त तरक़्क़ी अपनी और हमारी तोल रहे थे

बातें मीठी-मीठी ही थी लेकिन ख़ूब बुझी थी विष में
मेरी उम्मीदों के रस में वो अपना विष घोल रहे थे

आइंदा उनके घर आना-जाना कौन क़ुबूल करेगा
मुझमें इतनी गहराई से वो ज़र-ओ-माल टटोल रहे थे

वो अपनी औक़ात दिखाकर चाह रहे थे जो समझाना
हम पहले ही जान चुके पर करते टाल-मटोल रहे थे

गाड़ी बंगला सोना चाँदी बैंक एकाउँट इनकम-विनकम
सबका ख़ूब मिलान किया फिर सुपर-डुपर बन बोल रहे थे

इन शब्दों में सच्चाई है 'नित्य' कोई संदेह न रखना
अंतर है केवल इतना-भर बिकते ये बेमोल रहे थे

- Nityanand Vajpayee
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