किसी के हुस्न की वादी में सैर कर आया
बिना छुए वो समंदर मैं तैर कर आया
निगाह-ए-यार में अज़मत कमाना मुश्किल था
मैं काम खेंच-खुरचते बग़ैर कर आया
शिकस्त-ए-रंग ज़माना है मेरे आगे अब
मैं बादशाहों से भी कैसे बैर कर आया
बमुश्किलात मैं ज़िंदादिली से ज़िंदा हूँ
ये सारा था तो कठिन पर मैं ख़ैर कर आया
वो जिनके मुँह की तरफ़ मुँह भी डर से होता था
मैं उनके मुँह की तरफ़ अपना पैर कर आया
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