उड़ चला मन का परिंदा है ख़ुदा ख़ैर करे - Nityanand Vajpayee

उड़ चला मन का परिंदा है ख़ुदा ख़ैर करे
ये कहाँ मौत से डरता है ख़ुदा ख़ैर करे

सारे बारूद के ढेरों की पहुँच अंबर तक
उनसे लड़ खप के भी ज़िंदा है ख़ुदा ख़ैर करे

बाज लाखों हैं यहाँ पंखों को तोले फिरते
आसमाँ ख़ुद में शिकंजा है ख़ुदा ख़ैर करे

होती मज़हब के कुदालों से क़ज़ा की खेती
शहर नफ़रत से सुलगता है ख़ुदा ख़ैर करे

अब तो इंसान ही इंसाँ का है जानी दुश्मन
घर पड़ोसी का जलाता है ख़ुदा ख़ैर करे

मस'अले जो कि नहीं उलझे दिखे हैं बिल्कुल
कौन उनमें भी अड़ंगा है ख़ुदा ख़ैर करे

आज हिंसा ने अहिंसा को किया घुटनों पर
तख़्त आतंक को मिलता है ख़ुदा ख़ैर करे

'नित्य' अफ़राद जो नासाज़ हैं जमहूरी अगर
उन पे बारूद का ख़तरा है ख़ुदा ख़ैर करे

- Nityanand Vajpayee
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