उड़ चला मन का परिंदा है ख़ुदा ख़ैर करे
ये कहाँ मौत से डरता है ख़ुदा ख़ैर करे
सारे बारूद के ढेरों की पहुँच अंबर तक
उनसे लड़ खप के भी ज़िंदा है ख़ुदा ख़ैर करे
बाज लाखों हैं यहाँ पंखों को तोले फिरते
आसमाँ ख़ुद में शिकंजा है ख़ुदा ख़ैर करे
होती मज़हब के कुदालों से क़ज़ा की खेती
शहर नफ़रत से सुलगता है ख़ुदा ख़ैर करे
अब तो इंसान ही इंसाँ का है जानी दुश्मन
घर पड़ोसी का जलाता है ख़ुदा ख़ैर करे
मस'अले जो कि नहीं उलझे दिखे हैं बिल्कुल
कौन उनमें भी अड़ंगा है ख़ुदा ख़ैर करे
आज हिंसा ने अहिंसा को किया घुटनों पर
तख़्त आतंक को मिलता है ख़ुदा ख़ैर करे
'नित्य' अफ़राद जो नासाज़ हैं जमहूरी अगर
उन पे बारूद का ख़तरा है ख़ुदा ख़ैर करे
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