मिस्टर बिला-वजह की ये हुज्जत हराम है
पाई दबाव से तो इज़ाफ़त हराम है
बंदा है नेक तू तो मुशक़्क़त से कुछ कमा
मेहनत बिना मिले जो वो दौलत हराम है
है चीथड़ों में शान अगर ख़ुद कमाए हों
माँगे हुए लिबास की शौकत हराम है
गर हक़ पे है लड़ाई तो फिर इंतिक़ाम जान
मुफ़लिस पे कर रहा है तो हैबत हराम है
उपमन्यु रोज़गार को तरजीह दीजिए
कुनबे को भूखा रक्खे तो फ़ुरसत हराम है
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