ग़ज़ल को ज़िंदगी अब गुनगुनाना चाहती है

  - Raj Tiwari

ग़ज़ल को ज़िंदगी अब गुनगुनाना चाहती है
हमारे पास आने का बहाना चाहती है

रखा था उम्र भर गुल ने जिसे पलकों पे अपने
वो तितली आसमाँ में आशियाना चाहती है

हमें अब आरज़ू है सब परिंदे लौट आएँ
हमारी शाम शाख़ों को हँसाना चाहती है

हमारी पलकों पर सावन उतरना चाहता है
बहार आँखों में आकर मुस्कुराना चाहती है

नदामत होती है दीवानगी से लफ्ज़-गर के
मगर वो हम-सफ़र कोई दिवाना चाहती है

जो ख़्वाबों के दरीचे से लगी है एक चिलमन
तिरी उँगली पकड़कर साथ जाना चाहती है

  - Raj Tiwari

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