हमने चाहा जिसे ज़िन्दगी के लिए - Rakesh Mahadiuree

हमने चाहा जिसे ज़िन्दगी के लिए
दिल लगाया था वो दिल्लगी के लिए

आपने तो हमें ग़म ही ग़म दे दिया
आपको हमने चाहा ख़ुशी के लिए

प्यार की रुत वो आकर चली भी गई
चाँद भटका बहुत चाँदनी के लिए

दिल से मजबूर होकर जो हम रो पड़े
होंठ उसने छुपाए हँसी के लिए

वो मुहब्बत के सागर में गोता किए
हम तरसते रहे इक ख़ुशी के लिए

आपने जान देने की क्यों ठान ली
कोई मरता नहीं है किसी के लिए

हमको करनी कहाँ थी मुहब्बत मगर
हमने कर ली तुम्हारी ख़ुशी के लिए

दिल लगाए अगर तो निभाए उसे
है ज़रूरी बहुत आदमी के लिए

आशिक़ों की भी अपनी अना है मियाँ
दिल धड़कता नहीं हर किसी के लिए

सख़्त हो संग से पानी से हो तरल
वो जिगर चाहिए आशिक़ी के लिए

आपके हिस्से आया है शेर-ओ-सुखन
रात भर जागिए शायरी के लिए

- Rakesh Mahadiuree
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