दिन भी शब भी जा भी बन सकता था - Raunak Karn

दिन भी शब भी जा भी बन सकता था
मैं सपने में कुछ भी बन सकता था

आखों में पानी तन पे मिट्टी था
मैं तो शायद जल भी बन सकता था

यादों की धुन सच कर पाता मैं तो
मेरा फिर जीवन भी बन सकता था

उसकी आखों का जा होने में मैं
बस एक खोया मन भी बन सकता था

ये भी वो भी ऐसा भी वैसा भी
मैं तो ' रौनक ' कुछ भी बन सकता था

- Raunak Karn
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