तबाही की तरफ़ ले जा रही थी - Sohil Barelvi

तबाही की तरफ़ ले जा रही थी
जो दौलत मुफ़्त में हम को मिली थी

अचानक हो गई तब्दील ग़म में
मिरे हिस्से में जितनी भी ख़ुशी थी

जो मंज़र था हमारे रू-ब-रू था
घुटन बाहर से अंदर आ रही थी

उगाईं ज़ख़्म की अश्कों ने फ़स्लें
मेरे दिल की ज़मीं बंजर पड़ी थी

तबाह होने से यूँ भी बच गया मैं
मिरे होटों पे इक उँगली रखी थी

उसे भी कर दिया बे-रंग तुम ने
मिरे अंदर जो इक दुनिया बसी थी

तवज्जोह दे नहीं पाया किसी को
अकेले-पन की आदत पड़ गई थी

- Sohil Barelvi
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