कोई ख़ूबसूरत मुझे अब नज़ारा नहीं देखना है
क़सम है ख़ुदा की तुम्हें अब दोबारा नहीं देखना है
सहूलत अगर दे मुझे ज़िंदगी तो नया कुछ करूँगा
गुज़िश्ता दिनों में जो मैं ने गुज़ारा नहीं देखना है
मैं किस को बताऊँ मेरे साथ क़िस्मत ने क्या खेल खेले
मुझे अब फ़लक पर कोई भी सितारा नहीं देखना है
अभी लुत्फ़ लेना है मुझ को कई साल तेरे करम का
अभी ज़ख़्म-ए-दिल का मुझे कोई चारा नहीं देखना है
मोहब्बत जिधर भी मुझे मिल रही है चला जा रहा हूँ
मेरे यार मुझ को हमारा तुम्हारा नहीं देखना है
अभी तो बहुत काम सोहिल तेरे बिन अधूरे पड़े हैं
अभी यार इस ज़िंदगी का किनारा नहीं देखना है
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