कोई समझेगा नहीं दुनिया में प्यारा मुझ को
याद रह जाएगा बस नाम तुम्हारा मुझ को
दोस्त ने यार ने दुनिया ने मुझे लूट लिया
मैं समझता था नहीं होगा ख़सारा मुझ को
एक दो रात नज़र भर के नहीं देखा फ़लक
दम-ब-दम देख रहा एक सितारा मुझ को
अब तमन्ना तो यही है कि मैं जी लूँ थोड़ा
वक़्त गर लाया है इस सम्त दोबारा मुझ को
तब कहीं जा के सफ़ीने में मुसाफ़िर बैठे
पहले दरिया में मिरे यार उतारा मुझ को
जो सज़ा आज तुझे देनी है दे ले लेकिन
कोई इल्ज़ाम नहीं देना दोबारा मुझ को
जब मैं नासाज़ तबीअत में था तो ग़ौर किया
मौत ने आ के कई बार पुकारा मुझ को
क्या करूँ वक़्त ने बे-रंग बना डाला है
रास आता ही नहीं कोई नज़ारा मुझ को
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