महताब तेरे रुख़ की ज़ियारत का नाम है
सिंदूर तेरी माँग का उल्फ़त का नाम है
तकलीफ़ दे रही है मुझे बे-रुख़ी तिरी
नज़रें चुराना तेरा अज़िय्यत का नाम है
वल्लाह पास कुछ भी नहीं ख़ार के सिवा
जो आप माँगते हैं वो निकहत का नाम है
कहते हैं लोग जिस को सनम बादा-ए-इरम
वो तो तिरे लबों की हलावत का नाम है
मुरझा गए हैं फूल याँ अहद-ए-बहार में
कश्मीर की सुना था ये जन्नत का नाम है
पूछेगा मुझ से गर कोई बारे में इश्क़ के
कह दूँगा साफ़-साफ़ मुसीबत का नाम है
तुम से ये किसने कह दिया फुर्क़त-ज़दा हूँ मैं
'ज़ामी' तो मेरी जान मसर्रत का नाम है
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