कितनी ख़ूबसूरत है शाइरी की ज़ीनत है
मेरे दिल के मंदिर में आप ही की मूरत है
मेरे क़ल्ब-ए-मोमिन पर यूँ तिरी हुकूमत है
मेरा दिल नमाज़ी है आप की इमामत है
तू किरण है सूरज की मैं उजाला जुगनू का
इश्क़ कर लिया तुम से ये मिरी जसारत है
तेरे लौट आने की अब भी आस है मुझ को
आस छोड़ दूँ कैसे एक ही तो हसरत है
तेरी दिल-शिकन चालों से मैं ख़ूब वाक़िफ़ हूँ
आज मैं जो शाइर हूँ सब तिरी बदौलत है
सादा-दिल हो तुम 'ज़ामी' और वो है शहज़ादी
घर तो तिरा मिट्टी का सावनों से उल्फ़त है
फ़लसफ़ा यही सीखा मैंने 'ज़ामी' क़ब्रों से
ज़िंदगी फ़साना है मौत ही हक़ीक़त है
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