जो कलेजे के पार होते हैं
वो अज़ीज़ों के वार होते हैं
लोग जो दिल-फ़िगार होते हैं
ख़ुद-कुशी का शिकार होते हैं
जिन की मंज़िल गुलाब होती है
उन की राहों में ख़ार होते हैं
जो मोहब्बत-शिआर होते हैं
हर-घड़ी ख़ुश-गवार होते हैं
प्यार तो एक बार होता है
हादसे बार-बार होते हैं
पत्थरों को ख़ुदा बना दे जो
ऐसे भी दस्तकार होते हैं
इन फ़क़ीरों के हाल पर मत जा
ये बड़े मालदार होते हैं
आँख हम अपनी बंद कर लेंगे
आप क्यूँ शर्म-सार होते हैं
जो समझते हैं ख़ुद को दानिश-वर
वो असल में गँवार होते हैं
जिन को आती नहीं अदाकारी
हम तो उन में शुमार होते हैं
हम क़लंदर-मिज़ाज हैं 'ज़ामी'
हम कनाअत-शिआर होते हैं
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