इस क़मर को मत छुपाओ अँधेरा है
चेहरे से पर्दा उठाओ अँधेरा है
गुलशन-ए-ज़ेबा को ज़ुल्मत से ख़तरा है
माली सूरज-मुख उगाओ अँधेरा है
सुब्ह तक की इंतिज़ारी नहीं होती
कोई सूरज को बुलाओ अँधेरा है
शाम-ए-तन्हाई की तफ़रीह के ख़ातिर
जुगनुओं कुछ गीत गाओ अँधेरा है
साक़िया बोतल फ़रोग़-ए-तजल्ली की
मेरे होंठों से लगाओ अँधेरा है
किस क़दर तारीक है शब अमावस की
आज दीपक मत बुझाओ अँधेरा है
जब तलक सूरज को ग्रहण लगे 'ज़ामी'
चाँद का क़िस्सा सुनाओ अँधेरा है
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