मुक़र्रर दिन नहीं तो लम्हा-ए-इमकान में आओ
अगर तुम मिल नहीं सकते तो मेरे ध्यान में आओ
कि ये ना हो तुम्हें अनजान कहकर दिल दफ़ा कर दे
तुम्हारे पास अब भी वक़्त है पहचान में आओ
झिझक है, खौफ़ भी है, रंज भी है कुछ ख़ुशी भी है
यही है वक़्त मिलने का, इसी दौरान में आओ
बला की ख़ूबसूरत लग रही हो आज तो जानाँ
मुझे इक बात कहनी है तुम्हारे कान में आओ
महाज़े इश्क़ में जलवे दिखाऊँगा तुम्हें अपने
कभी कमरे में आओ माज़रत मैदान में आओ
हमारी जब ज़रूरत थी, तुम्हारे जश्न में आये
तुम्हारी अब ज़रूरत है, हमारी शान में आओ
वगरना यूँ तो हर इक मुल्क में कुछ रंग देखोगे
इकट्ठे देखने हो सब तो हिंदुस्तान में आओ
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