तुम्हारा रंग दुनिया ने छुआ था तब कहां थे तुम?
हमारा कैनवस ख़ाली पड़ा था तब कहां थे तुम?
मेरे लशकर में शिरकत की इजाज़त मांगने वालो!
मैं परचम थाम कर तन्हा खड़ा था तब कहां थे तुम?
तुम्हारी दस्तकों पर रहम आता है मुझे लेकिन
ये दरवाज़ा कई दिन से खुला था तब कहां थे तुम?
फलों पर हक़ जताने आए हो तो ये भी बतला दो
मैं जब पौधों को पानी दे रहा था तब कहां थे तुम?
ये बस इक रस्मिया तफ़तीश है, आराम से बैठो
वफ़ा का ख़ून जिस शब को हुआ था तब कहां थे तुम?
मुआफ़ी चाहता हूं अब तो बस ख़बरों से मतलब है
मैं जब रूमानी फ़िल्में देखता था तब कहां थे तुम?
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