रखा उस पार अब कुछ भी नहीं सामान जो भी हो
कि पुल ही ढह चुका ऐ दिल तिरे ऐलान जो भी हो
किसी घायल से पानी पूछते चलना ज़रूरी है
भले बढ़ता रहे हर-गाम रेगिस्तान जो भी हो
कभी तो ख़ास वो तितली गुलों पर जान छिड़केगी
बढ़ाता जा गुलों की शान तू नुक़सान जो भी हो
उधारी के बराबर लोग रखते हैं मरासिम सो
लिए चलता हूँ मैं क़र्ज़ उन से ही पहचान जो भी हो
कहा जिसको भी सूरज वो सभी ढलते गए मतलब
सियाही ढूँढ ही लेती है रौशनदान जो भी हो
वरक़ पर आज के बरसों में ठहरा है फ़लक आओ
लिखें ज़िंदान में भी नज़्म हम उनवान जो भी हो
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