नुमाइश है यहाँ लगती जमाल-ए-ज़ख़्म की हर-सू

  - kapil verma

नुमाइश है यहाँ लगती जमाल-ए-ज़ख़्म की हर-सू
बिखेरा जिस क़दर इस्मत को उतना दाम लगता है

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