मेरे हिस्से चैन की कोई रात नहीं
या फिर मेरे सोने के हालात नहीं
मुझको खेल में राजा समझा जाता है
लेकिन मेरी पिद्दी सी औक़ात नहीं
मेरी तन्हाई मेरी क़िस्मत में है
या फिर शहर में कोई आदम जात नहीं
ये जो कुछ आँसू काग़ज़ पर बिखरे हैं
दर्द बयानी हैं मेरे जज़्बात नहीं
रोज ख़ुदा से तुझको मांगा करता हूं
बस तुझको ही, यादों की बारात नहीं
बस एक लतीफ़ा लगती थी मौत हमें
डरता हूं जब हात में तेरा हात नहीं
इश्क़ भरा वो लहज़ा वो लम्बी बातें
मेरे हक़ में पहले सी बरसात नहीं
मेरे रोने पे तुम बिल्कुल मत रोना
दुनिया है, चलता है कोई बात नहीं
इश्क़ में हारे लोग हैं साहब अब हम में
इश्क़ दुबारा करने की औकात नहीं
जीत का मोह नहीं इक तरफा आशिक़ हूं
अफ़सोस तो हो सकता है पर मात नहीं
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