शायर होना ऐसा वैसा खेल नहीं
जज़्बातों को बहर में कहना खेल नहीं
हम तो वो है जिनके खूँ में गर्मी है
अपनी खातिर जंग सा दूजा खेल नहीं
आए दिन नाराज़ वो मुझसे रहती है
यार मुहब्बत मेरे बस का खेल नहीं
हर शख़्स को प्यार मिले ये नामुमकिन है
हर इक ख़्वाब का पूरा होना खेल नहीं
हर मोड़ पे पत्थर जैसे लोग मिलेंगे
दरियाओं सा बहते रहना खेल नहीं
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