कैसे कटते होंगे उन के रात दिन मेरे बग़ैर
क्या सुहाती होंगी हाथों को शगुन की चूड़ियाँ
जिन को पहना दी गई हों पगड़ियों के नाम पर
जाके उनसे पूछिये हैं कितनी भारी चूड़ियाँ
देख हाथों में सखी के मुझ से यूँ कहने लगी
मुझ को भी ला कर के दो ना बाबा ऐसी चूड़ियाँ
कितने कुनबे टूटे हैं सरहद बचाने के लिए
और टूटी हैं न जाने कितनी सारी चूड़ियाँ
नैन अचानक ही छलक उट्ठे जूँ ही उसने सुना
तुम पे ये अच्छी लगेंगी ले लो बीबी चूड़ियाँ
किरचियाँ आंखों में चुभती होंगी उनकी टूट कर
किस क़दर उनको रुलाती होंगी उनकी चूड़ियाँ
तर्जमानी थी कभी अफ़ज़ल हमारे इश्क़ की
हो गईं हैं क्यूँ भला अब बे मआनी चूड़ियाँ
Read Full