आज-कल सजाकर हम झूटे ख़त नहीं रखते

  - Aqib khan

आज-कल सजाकर हम झूटे ख़त नहीं रखते
इस हयात में तुम अब अहमियत नहीं रखते

एक दिल में टिकने की है नहीं उन्हें आदत
एक मुल्क की वो तो शहरियत नहीं रखते

आपसे गिला कैसा , आपसे शिकायत क्या
आप तो अदब की ही तरबियत नहीं रखते

कोशिशें यही हैं बस ख़ुद से आगे जा पाएँ
और इस इरादे में कुछ ग़लत नहीं रखते

एक वक़्त ऐसा था वो फ़क़त हमारा था
आज जिसके ऊपर हम तमकनत नहीं रखते

आपका जो ओहदा है आपको मुबारक हो
आप मेरी नज़रों में मंज़िलत नहीं रखते

  - Aqib khan

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