दिल-ए-सहरा को आब-जू करता
काश वो अश्क से वुज़ू करता
दिल के हाथों मैं चुप रहा वरना
बेवफ़ाई मैं हू-ब-हू करता
जिसने चाहा कतर के छोड़ दिया
कोई तो ज़ख़्म पर रफ़ू करता
उसने चाहा था उसकी फ़ुर्क़त में
सर से पा तक बदन लहू करता
तीरगी से मुझे निभानी थी
रौशनी वरना कू-ब-कू करता
फिर निकल आया अपने अंदर से
कब तलक ख़ुद से गुफ़्तुगू करता
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