नज़र से दिल में दाखिल हो रहा है

  - Dharamraj deshraj

नज़र से दिल में दाखिल हो रहा है
कोई मेरे मुक़ाबिल हो रहा है

नहीं अंजाम की परवाह यारो
अभी इन्सान ग़ाफ़िल हो रहा है

सितम हँस-हँसके सहता हूँ जहाँ के
ज़माना कितना बेदिल हो रहा है

जमा कब तक करूँ ग़म बाँट दूँगा
ज़माने से जो हासिल हो रहा है

तिरी बस्ती में सारे देवता हैं
यहाँ जीना भी मुश्किल हो रहा है

फ़रेबो - फ़न्द से उन रहबरों के
ज़माना है कि कामिल हो रहा है

बुज़ुर्गों से 'धरम' हमको जहाँ मैं
हुनर जीने का हासिल हो रहा है

  - Dharamraj deshraj

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