सियासत वालों से ये चोट खाई है
कभी आवाज़ ख़ुद की भी उठाई है
दिये को तो बुझा देती हवा पल में
हुआ जो आग देने साथ आई है
उसे मैं भूल जाऊँगा मगर कैसे
वो आकर के मेरे अंदर समाई है
सुकूँ को मार दो गोली जवानी में
अभी प्रायोरिटी पर बस कमाई है
ज़रा बेहतर बनाने के ही चक्कर में
धरम ये ज़िंदगी सारी गवाई है
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