मेरे दरवाज़े पे कल शब तेरी आहट सी थी कुछ - Firdous khan

मेरे दरवाज़े पे कल शब तेरी आहट सी थी कुछ
सुबह से फूलों में घर के मुस्कुराहट सी थी कुछ

कल दिखे थे राह में वो कुछ तो कहना था उन्हें
क्योंकि उन ग़ुमसुम लबों पर थरथराहट सी थी कुछ 

अब नहीं है याद हमको नूर तेरी आँखों का
हाँ ! मगर तेरी नज़र में झिलमिलाहट सी थी कुछ

मेरी बेटी ने तसव्वुर में रखा पहला कदम
उसके चलने की सदा में छनछनाहट सी थी कुछ

उसको मैंने देखा था जब लब किसी के चूमते
दर्द जैसा कुछ नहीं था तिलमिलाहट सी थी कुछ

दर्द हमको ज़िन्दगी के सब थपेडों से मिला
मौत की गोदी मे मानो थपथपाहट सी थी कुछ

- Firdous khan
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