उसके दर पर लौट के अब क्या करना है
इश्क़ में मुझको ख़ूब तमाशा करना है
मेरी मुझसे बस इतनी सी हसरत है
माँ की ख़ातिर कुछ तो अच्छा करना है
मुझको बंसी बन जानें दो मोहन की
मुझको सुर में राधा राधा करना है
ये क्या दिल में उसकी यादें रखनी है
और इस दिल का बोझ भी हल्का करना है
मेरी बेटी कहकर दफ़्तर निकली है
मुझको इस दुनिया से झगड़ा करना है
जिस कूचे पे उसकी खिड़की खुलती है
उस कूचे से आना जाना करना है
इक शब मजनूँ बोला अपनी लैला से
मुझको इश्क़ में जिस्म का सौदा करना है
उसको रब्त-ए-ख़ास से भी इनकार नहीं
उसको दूजा रब्त भी पैदा करना है
ग़ालिब का दीवान सजा दो कमरे में
इस कमरे में और उजाला करना है
Read Full