कुछ इस तरह वो बैठा था जंजाल रोक कर - Divya 'Kumar Sahab'

कुछ इस तरह वो बैठा था जंजाल रोक कर
बैठा हुआ था कान से वो बाल रोक कर

उनका टिफ़िन खुला तो मुझे माइका दिखा
मैंने रखा था मीठे में ससुराल रोक कर

लड़के की जेब में तुम्हें आँसू पड़े मिले
उसने रखा है आँखों में रूमाल रोक कर

चिड़िया वो उड़ गई तो शजर सूखता गया
छोड़ी है जान पर खड़ा है डाल रोक कर

सुनली ख़बर जो फूल ने तितली के आने की
बैठा हुआ है तब से इधर गाल रोक कर

ये ज़िंदगी भी चल रही है इस तरह यहाँ
गाना ये जैसे चल रहा सुर-ताल रोक कर

ये रंग आसमान का नीला ही क्यों पड़ा
बैठे हैं कालकूट महाकाल रोक कर

- Divya 'Kumar Sahab'
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