दरिया कोई तलाश करना है
हद से यानी कि अब गुज़रना है
ये ग़म-ए-हिज्र कल नया होगा
डूबकर बहर-ए-इश्क़ मरना है
आँख का अश्क जो पुराना था
अब उसे ना-पसंद करना है
बोझ सौ सौ मैं ढ़ोते जा रहा हूँ
उनको सौ से पचास करना है
बस ज़माने कि बात है इतनी
गर दिए हँस तो यार मरना है
आइना अपना जब पता भूला
अब तो उसको भी फिर बिखरना है
ये ज़माना कहे 'ललित' से अब
अब हमें कुछ तो ख़ास करना है
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