इक कहानी को बयाँ करने लगा हूँ
मैं ज़मीं को आसमाँ करने लगा हूँ
रोज़ काँटों की चुभन सहता गया मैं
ख़ुद को बे-नाम-ओ-निशाँ करने लगा हूँ
हाथ में सिगरेट को मैंने ले लिया है
ज़िंदगी को मैं धुआँ करने लगा हूँ
चोट दुनिया कर रही मासूम दिल में
मैं तो फिर भी नेकियाँ करने लगा हूँ
मुझको नश्तर की चुभन मिलती रही है
ज़िंदगी को ख़ुद ख़िज़ाँ करने लगा हूँ
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