ख़्वाब देखो मेरे अब तो मर रहे हैं

  - Lalit Mohan Joshi

ख़्वाब देखो मेरे अब तो मर रहे हैं
अब हुए बेजान सोचो मर रहे हैं

आपकी बातें समझ हमको न आई
अब समझ आई तो देखो मर रहे हैं

ये नतीजा यार चुप्पी का हुआ अब
ज़ेहन से ख़ाली हुए सो मर रहे हैं

ख़ार के रस्ते चले हैं ज़िंदगी भर
उम्र जीने की हुई तो मर रहे हैं

बस यही है आख़िरी ख़्वाहिश हमारी
घर सुकूँ हर पल हो हम तो मर रहे हैं

जिनसे पाला पड़ गया डायन का यारो
उम्र के हर पल में वो तो मर रहे हैं

तीस की ये उम्र में साहब ललित के
हाय दो लब-ख़ंद अब तो मर रहे हैं

  - Lalit Mohan Joshi

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