नहीं है राब्ता उसका तो दानाई से यारो - Lalit Mohan Joshi

नहीं है राब्ता उसका तो दानाई से यारो
नहीं मिलता गले कोई यहाँ भाई से यारो

ज़माना देखो कैसे भागता रहता यहाँ है
बचा पाता न ख़ुद को ग़म की वो खाई से यारो

शजर कटने लगे सारे के सारे अब यहाँ फिर
महल बनते ही आहत है शजर घाई से यारो

उसे लगता मिरा कोई नहीं है अब यहाँ पर
मोहब्बत चाँद को है मेरी रानाई से यारो

मैं अंगारों के बिस्तर पर ही सोता हूँ यहाँ अब
मगर सब डर गए है फ़र्श की काई से यारो

- Lalit Mohan Joshi
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