यहाँ सुख के बिताए पल की क़ीमत भी बहुत थी
लगाना दिल पड़ा उसकी ज़रूरत भी बहुत थी
बसाया एक दिल में था कई लोगों को उसने
मगर उससे मुझे देखो मुहब्बत भी बहुत थी
मुझे तो बात पत्थर दिल से करने को कहा था
नहीं कर बात उससे मुझमें ग़ैरत भी बहुत थी
सुनो मैं यार उसका ज़ख़्म भी हर सह गया था
मेरी यानी तबीअत में बग़ावत भी बहुत थी
मुहब्बत में तो मैं अनजान ही था दर्द से भी
यक़ीनन दिल मिरे तिल भर इनायत भी बहुत थी
यहाँ शौहर यूँ ही तो था नहीं मशहूर उसका
उसे तो इस ग़ज़ब फ़न में महारत भी बहुत थी
नई ग़ज़लें सुनाया करता था हर शाम यारों
बहुत था जब लिखा तब तो सख़ावत भी बहुत थी
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