क्यूँ बिछाता है नज़ारे तू लुभाने के लिए - Navin Joshi

क्यूँ बिछाता है नज़ारे तू लुभाने के लिए
जब पता है तुझे आया हूँ मैं जाने के लिए

वो कोई रस्म हो रिश्ता हो या फिर जीवन हो
मैं निभाऊँगा नहीं सिर्फ़ निभाने के लिए

जिनमें बनती नहीं रक्खे हैं वो दो मैं मैंने
एक मैं मेरे लिए एक ज़माने के लिए

डर लगा मुझको कि दुनिया न जला दे सारी
और मैं रो पड़ा वो आग बुझाने के लिए

लाव-लश्कर तेरा दुश्मन को मुबारक मेरे
मुझ को काफ़ी है तू हर जंग जिताने के लिए

ये तसल्ली रहे दिल को तेरे ऐ मेरे रक़ीब
मैं न जीतूँगा कभी तुझको हराने के लिए

शिव-धनुष उठ नहीं सकता ये ग़लत बात है दोस्त
बस कोई राम नहीं मिलता उठाने के लिए

- Navin Joshi
4 Likes

More by Navin Joshi

As you were reading Shayari by Navin Joshi

Similar Writers

our suggestion based on Navin Joshi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari