क्यूँ बिछाता है नज़ारे तू लुभाने के लिए
जब पता है तुझे आया हूँ मैं जाने के लिए
वो कोई रस्म हो रिश्ता हो या फिर जीवन हो
मैं निभाऊँगा नहीं सिर्फ़ निभाने के लिए
जिनमें बनती नहीं रक्खे हैं वो दो मैं मैंने
एक मैं मेरे लिए एक ज़माने के लिए
डर लगा मुझको कि दुनिया न जला दे सारी
और मैं रो पड़ा वो आग बुझाने के लिए
लाव-लश्कर तेरा दुश्मन को मुबारक मेरे
मुझ को काफ़ी है तू हर जंग जिताने के लिए
ये तसल्ली रहे दिल को तेरे ऐ मेरे रक़ीब
मैं न जीतूँगा कभी तुझको हराने के लिए
शिव-धनुष उठ नहीं सकता ये ग़लत बात है दोस्त
बस कोई राम नहीं मिलता उठाने के लिए
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